चिकित्सक भी चौलाई के साग का सेवन करने की सलाह देते हैं
दरअसल, चिकित्सक भी चौलाई के साग का सेवन करने की सलाह देते हैं। चौलाई में विभिन्न प्रकार के विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-ए, फॉस्फोरस और मिनिरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह एक प्रकार से आयरन का भंडार है। चौलाई के साग का सेवन करने से आंखों की रोशनी अच्छी रहती है। शरीर में भी खून की कमी नहीं होती है। साथ ही, यह कफ और पित्त का भी खात्मा करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि चौलाई की सब्जी का सेवन करने से कब्ज की बीमारी सही हो जाती है। साथ ही, पाचन तंत्र भी बेहतर ढंग से कार्य करता है।
चौलाई साग के लिए कितना डिग्री तापमान बेहतर होता है
चौलाई साग की खेती के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा माना गया है। आप इसकी पत्तियों एवं तनों को पकाकर स्वादिष्ट सब्जी भी बना सकते हैं। यह एक नगदी फसल है। ऐसी स्थिति में यदि छोटी जोत वाले किसान इसका उत्पादन करतें हैं, तो उनको बेहतर आमदनी अर्जित हो सकती है।
खेत में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था जरुरी
जैसा कि हमने उपरोक्त में बताया है, कि चौलाई की खेती किसी भी तरह की मृदा में की जा सकती है। हालाँकि, बलुई-दोमट मृदा को इसकी खेती लिए सर्वोत्तम माना गया है। यह साग की ऐसी किस्म है, जिसकी खेती गर्म और ठंड दोनों प्रकार के मौसम में की जा सकती है। यदि किसान भाई चौलाई की खेती करना चाहते हैं, तो उनको सर्वप्रथम खेत की जुताई करने के उपरांत एकसार करना पड़ेगा। उसके बाद खेत में चौलाई के बीज की बुवाई करनी पड़ेगी। चौलाई के खेत में सदैव उर्वरक के तौर पर गोबर का ही उपयोग करें, इससे बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है। एक और मुख्य बात यह है, कि खेत में जल निकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी अति आवश्यक है।
मृदा में निरंतर नमी बनाए रखें परंतु जलभराव की स्थिति ना होने दें। पौधों के चारों तरफ मल्चिंग करने से नमी बनाए रखने और खरपतवार की बढ़वार को प्रतिबंधित करने में सहायता मिल सकती है। इस साग को नियमित तौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। साथ ही, इनमें कीड़े लगने का संकट काफी कम अथवा ना के बराबर रहता है।
कोलार्ड साग की कटाई का उचित समय क्या होता है
कोलार्ड साग की कटाई उस दौरान की जा सकती है, जब पत्तियां बड़ी और गहरे हरे रंग की हों। यह साग खेतों में बीज बोने के उपरांत तकरीबन पांच से छह हफ्तों में तैयार हो जाता है। कोलार्ड साग को ताजा इस्तेमाल करना सबसे बेहतर माना जाता है। हालांकि, इसका थोड़े वक्त के लिए भंडारण किया जा सकता है। इसके लिए पत्तियों को नियमित तौर पर अच्छी तरह से धोना पड़ता है। साथ ही, तकरीबन एक सप्ताह तक ताजा रखा जा सकता है।
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भारत के अंदर कोलार्ड साग की खेती कहाँ की जाती है
कोलार्ड साग भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है। विशेष तौर पर कोलार्ड साग का उत्पादन दक्षिण भारतीय राज्यों में किया जाता है। जहां मौसम ठंडा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इस साग को कश्मीर के अंदर काफी बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल के किसान भी खास तौर से इस कोलार्ड साग की खेती करते हैं।
बाजार के अंदर कोलार्ड साग की काफी ज्यादा मांग होती है। बतादें, कि इसको औषधीय उपयोग में भी लाया जाता है। यदि इस साग की कीमत के विषय में चर्चा करें, तो इसका एक गुच्छा तकरीबन 100 रुपये में बिकता है। अब आप स्वयं इस बात का अनुमान लगा सकते हैं, कि किसान इसकी खेती से मात्र दो महीने में कितनी आमदनी कर सकते हैं।